Shri Hit Chaurasi Ji By Radha Keli Kunj Sampuran | श्री हित चौरासी जी Pad 1 se 48 Hindi Lyrics 

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Satsang Marg
Shri Hit Chaurasi Ji Hindi Lyrics | श्री हित चौरासी जी | sampuran shri hit chaurasi radha keli kunj

जोई जोई प्यारो करे सोई मोहि भावे, भावे मोहि जोई सोई सोई करे प्यारे
मोको तो भावती ठौर प्यारे के नैनन में, प्यारो भयो चाहे मेरे नैनन के तारे
मेरे तन मन प्राण हु ते प्रीतम प्रिय, अपने कोटिक प्राण प्रीतम मोसो हारे
जय श्रीहित हरिवंश हंस हंसिनी सांवल गौर, कहो कौन करे जल तरंगिनी न्यारे।।1।।


प्यारे बोली भामिनी, आजु नीकी जामिनी भेंटि नवीन मेघ सौं दामिनी ।
मोहन रसिक राइ री माई तासौं जु मान करै, ऐसी कौन कामिनी ।
(जैे श्री) हित हरिवंश श्रवन सुनत प्यारी राधिका, रमन सौं मिली गज गामिनी ।।2।।


प्रात समै दोऊ रस लंपट, सुरत जुद्ध जय जुत अति फूल।
श्रम-वारिज घन बिंदु वदन पर, भूषण अंगहिं अंग विकूल।
कछु रह्यौ तिलक सिथिल अलकावालि, वदन कमल मानौं अलि भूल।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन रँग रँगि रहे, नैंन बैंन कटि सिथिल दुकुल ।।3।।


आजु तौ जुवती तेरौ वदन आनंद भरयौ, पिय के संगम के सूचत सुख चैन।
आलस बलित बोल, सुरंग रँगे कपोल, विथकित अरुन उनींदे दोउ नैंन।।
रुचिर तिलक लेस, किरत कुसुम केस;सिर सीमंत भूषित मानौं तैं न।
करुना करि उदार राखत कछु न सार;दसन वसन लागत जब दैन।।

काहे कौं दुरत भीरु पलटे प्रीतम चीरु, बस किये स्याम सिखै सत मैंन।
गलित उरसि माल, सिथिल किंकनी जाल, (जै श्री) हित हरिवंश लता गृह सैंन ।।4।।


आजु प्रभात लता मंदिर में, सुख वरषत अति हरषि जुगल वर।
गौर स्याम अभिराम रंग भरे, लटकि लटकि पग धरत अवनि पर ।
कुच कुमकुम रंजित मालावलि, सुरत नाथ श्रीस्याम धाम धर ।
प्रिया प्रेम के अंक अलंकृत, विचित्र चतुर सिरोमनि निजु कर ।
दंपति अति मुदित कल, गान करत मन हरत परस्पर|
(जै श्री) हित हरिवंश प्रंससि परायन, गायन अलि सुर देत मधुर तर ।।5।।


कौन चतुर जुवती प्रिया, जाहि मिलन लाल चोर है रैंन ।
दुरवत क्योंअब दूरै सुनि प्यारे, रंग में गहले चैन में नैन ।।
उर नख चंद विराने पट, अटपटाे से बैन ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक राधापति प्रमथीत मैंन ।।6।।


आजु निकुंज मंजु में खेलत, नवल किसोर नवीन किसोरी ।
अति अनुपम अनुराग परसपर, सुनि अभूत भूतल पर जोरी ।।
विद्रुम फटिक विविध निर्मित धर, नव कर्पूर पराग न थोरी ।
कौंमल किसलय सैंन सुपेसल, तापर स्याम निवेसित गोरी ।।
मिथुन हास परिहास परायन, पीक कपोल कमल पर झोरी ।
गौर स्याम भुज कलह मनोहर, नीवी बंधन मोचत डोरी ।।
हरि उर मुकुर बिलोकि अपनपी, विभ्रम विकल मान जुत भोरी ।
चिबुक सुचारु प्रलोइ प्रवोधत, पिय प्रतिबिंब जनाइ निहोरी ।।
‘नेति नेति’ बचनामृत सुनि सुनि, ललितादिक देखतिं दुरि चोरी ।
(जै श्री) हित हरिवंश करत कर धूनन, प्रनय कोप मालावलि तोरी ।।7।।


अति ही अरुन तेरे नयन नलिन री ।
आलस जुत इतरात रंगमगे, भये निशि जागर मषिन मलिन री ।।
सिथिल पलक में उठति गोलक गति, बिंध्यौ मोंहन मृग सकत चलि न री ।
(जै श्री)हित हरिवंश हंस कल गामिनि,संभ्रम देत भ्रमरनि अलिन री ।।8।।


बनी श्रीराधा मोहन की जोरी ।
इंद्र नील मनि स्याम मनोहर, सात कुंभ तनु गोरी ।।
भाल बिसाल तिलक हरि, कामिनी चिकुर चन्द्र बिच रोरी ।
गज नाइक प्रभु चाल, गयंदनी – गति बृषभानु किसोरी ।।
नील निचोल जुवती, मोहन पट – पीत अरुन सिर खोरी
( जै श्री ) हित हरिवंश रसिक राधा पति, सूरत रंग में बोरी ।।9।।


आजु नागरी किसोर, भाँवती विचित्र जोर,
कहा कहौं अंग अंग परम माधुरी ।
करत केलि कंठ मेलि बाहु दंड गंड – गंड,
परस, सरस रास लास मंडली जुरी ।।
स्याम – सुंदरी विहार, बाँसुरी मृदंग तार,
मधुर घोष नूपुरादि किंकिनी चुरी ।
(जै श्री)देखत हरिवंश आलि, निर्तनी सुघंग चलि,
वारी फेरी देत प्राँन देह सौं दुरी।।10।।


मंजुल कल कुंज देस, राधा हरि विसद वेस, राका नभ कुमुद – बंधु, सरद जामिनी ।
सांँवल दुति कनक अंग, विहरत मिलि एक संग ;नीरद मनी नील मध्य, लसत दामिनी ।।
अरुन पीत नव दुकुल, अनुपम अनुराग मूल ; सौरभ जुत सीत अनिल, मंद गामिनी ।
किसलय दल रचित सैन, बोलत पिय चाटु बैंन ; मान सहित प्रति पद, प्रतिकूल कामिनी ।।
मोहन मन मथत मार, परसत कुच नीवी हार ; येपथ जुत नेति – नेति, बदति भामिनी ।
“नरवाहन” प्रभु सुकेलि, वहु विधि भर, भरत झेलि, सौरत रस रूप नदी जगत पावनी ।।11।।


चलहि राधिके सुजान, तेरे हित सुख निधान ; रास रच्यौ स्याम तट कलिंद नंदिनी ।
निर्तत जुवती समूह, राग रंग अति कुतूह ; बाजत रस मूल मुरलिका अनन्दिनी ।।
बंसीवट निकट जहाँ, परम रमनि भूमि तहाँ ; सकल सुखद मलय बहै वायु मंदिनी ।
जाती ईषद बिकास, कानन अतिसै सुवास ; राका निसि सरद मास, विमल चंदिनि ।।
नरवाहन प्रभु निहारी, लोचन भरि घोष नारि, नख सिख सौंदर्य काम दुख निकंदिनी ।

विलसहि भुज ग्रीव मेलि भामिनि सुख सिंधु झेलि ; नव निकुंज स्याम केलि जगत बंदिनी।।12।।


नंद के लाल हरयौं मन मोर । हौं अपने मोतिनु लर पोवति, काँकरी डारि गयो सखि भोर ।।
बंक बिलोकनि चाल छबीली, रसिक सिरोमनि नंद किसोर ।
कहि कैसें मन रहत श्रवन सुनि, सरस मधुर मुरली की घोर ।।
इंदु गोबिंद वदन के कारन, चितवन कौं भये नैंन चकोर ।
(जै श्री )हित हरिवंश रसिक रस जुवती तू लै मिलि सखि प्राण अँकोर ।।13।।


अधर अरुन तेरे कैसे कैं दुराऊँ ?
रवि ससि संक भजन किये अपबस, अदभुत रंगनि कुसुम बनाऊँ ||
सुभ कौसेय कसिव कौस्तुभ मनि, पंकज सुतनि लेे अंगनि लुपाऊँ |
हरषित इंदु तजत जैसे जलधर, सो भ्रम ढूँढि कहाँ हों पाऊँ ||
अंबु न दंभ कछू नहीं व्यापत, हिमकर तपे ताहि कैसे कैं बुझाऊँ |
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक नवरँग पिय भृकुटि भौंह तेरे खंजन लराऊँ।।14।।


अपनी बात मोसौं कहि री भामिनी,औंगी मौंगी रहति गरब की माती |
हों तोसों कहत हारी सुनी री राधिका प्यारी निसि कौ रंग क्यों न कहति लजाती ||
गलित कुसुम बैंनी सुनी री सारँग नैंनी, छूटी लट, अचरा वदति, अरसाती |
अधर निरंग रँग रच्यौ री कपोलनि, जुवति चलति गज गति अरुझाती ||
रहसि रमी छबीले रसन बसन ढीले, सिथिल कसनि कंचुकी उर राती ||
सखी सौं सुनी श्रावन बचन मुदित मन, चलि हरिवंश भवन मुसिकाती।।15।।


आज मेरे कहैं चलौ मृगनैंनी |
गावत सरस जुबति मंडल में, पिय सौं मिलैं पिक बैंनी||
परम प्रवीन कोक विद्या में, अभिनय निपुन लाग गति लैंनी |
रूप रासि सुनी नवल किसोरी, पलु पलु घटति चाँदनी रैंनी ||
(जै श्री ) हित हरिवंश चली अति आतुर, राधा रमण सुरत सुख दैंनी|
रहसि रभसि आलिंगन चुंबन, मदन कोटि कुल भई कुचैंनी ।16।।


आजु देखि व्रज सुन्दरी मोहन बनी केलि |
अंस अंस बाहु दै किसोर जोर रूप रासि, मनौं तमाल अरुझि रही सरस कनक बेलि ||
नव निकुंज भ्रमर गुंज, मंजु घोष प्रेम पुंज, गान करत मोर पिकनि अपने सुर सौं मेलि |
मदन मुदित अंग अंग, बीच बीच सुरत रंग, पलु पलु हरिवंश पिवत नैंन चषक झेलि।।17।।


सुनि मेरो वचन छबीली राधा | तैं पायौ रस सिंधु अगाधा ||
तूँ वृषवानु गोप की बेटी | मोहनलाल रसिक हँसि भेंटी ||
जाहि विरंचि उमापति नाये | तापै तैं वन फूल बिनाये ||
जौ रस नेति नेति श्रुति भाख्यौ | ताकौ तैं अधर सुधा रस चाख्यौ ||
तेरो रूप कहत नहिं आवै | (जै श्री) हित हरिवंश कछुक जस गावै ।।18।।


खेलत रास रसिक ब्रजमंडन | जुवतिन अंस दियें भुज दंडन ||
सरद विमल नभ चंद विराजै | मधुर मधुर मुरली कल बाजै ||
अति राजत घन स्याम तमाला | कंचन वेलि बनीं ब्रज बाला ||
बाजत ताल मृदंग उपंगा | गान मथत मन कोटि अनंगा ||
भूषन बहुत विविध रँग सारी | अंग सुघंग दिखावतिं नारी ||
बरषत कुसुम मुदित सुर जोषा | सुनियत दिवि दुंदुभि कल घोषा ||
(जै श्री) हित हरिवंश मगन मन स्यामा | राधा रमन सकल सुख धामा || 19 ||


मोहनलाल के रस माती | बधू गुपति गोवति कत मोसौं, प्रथम नेह सकुचाती ||
देखी सँभार पीत पट ऊपर कहाँ चूनरी राती |
टूटी लर लटकति मोतिनु की नख विधु अंकित छाती ||
अधर बिंब खंडित, मषि मंडित गंड, चलति अरुझाती |
अरुन नैंन घुँमत आलस जुत कुसुम गलित लट पाती ||
आजु रहसि मोंहन सब लूटी विविध, आपनी थाती |
(जै श्री) हित हरिवंश वचन सुनी भामिनि भवन चली मुसकाती ||20||


तेरे नैंन करत दोउ चारी |
अति कुलकात समात नहीं कहुँ मिले हैं कुंज विहारी ||
विथुरी माँग कुसुम गिरि गिरि परैं, लटकि रही लट न्यारी |
उर नख रेख प्रकट देखियत हैं, कहा दुरावति प्यारी ||
परी है पीक सुभग गंडनि पर, अधर निरँग सुकुमारी |
(जै श्री) हित हरिवंश रसिकनी भामिनि, आलस अँग अँग भारी ||21||


नैंननिं पर वारौं कोटिक खंजन |
चंचल चपल अरुन अनियारे, अग्र भाग बन्यौ अंजन ||
रुचिर मनोहर बंक बिलोकनि, सुरत समर दल गंजन |
(जै श्री)हित हरिवंश कहत न बनै छबि, सुख समुद्र मन रंजन || 22||


राधा प्यारी तेरे नैंन सलोल |
तौं निजु भजन कनक तन जोवन, लियौ मनोहर मोल ||
अधर निरंग अलक लट छूटी, रंजित पीक कपोल |
तूँ रस मगन भई नहिं जानत, ऊपर पीत निचोल ||
कुच जुग पर नख रेख प्रकट मानौं,संकर सिर ससि टोल |
(जै श्री) हित हरिवंश कहत कछू भामिनि, अति आलस सौं बोल || 23 ||


आजु गोपाल रास रस खेलत, पुलिन कलपतरु तीर री सजनी |
सरद विमल नभ चंद विराजत, रोचक त्रिविध समीर री सजनी ||
चंपक बकुल मालती मुकुलित, मत्त मुदित पिक कीर री सजनी |
देसी सुघंग राग रँग नीकौ, ब्रज जुवतिनु की भीर री सजनी ||
मघवा मुदित निसान बजायौ, व्रत छाँड़यौ मुनि धीर री सजनी |
(जै श्री)हित हरिवंश मगन मन स्यामा, हरति मदन घन पीर री सजनी || 24 ||


आजू निकी बनी श्री राधिका नागरी
ब्रज जुवति जूथ में रूप अरु चतुरई, सील सिंगार गुन सबनितें आगरी ||
कमल दक्षिण भुजा बाम भुज अंस सखि, गाँवती सरस मिलि मधुर सुर राग री |
सकल विद्या विदित रहसि ‘हरिवंश हित’, मिलत नव कुंज वर स्याम बड़ भाग री || 25 ||


मोहनी मदन गोपाल की बाँसुरी |
माधुरी श्रवन पुट सुनत सुनु राधिके, करत रतिराज के ताप कौ नासुरी ||
सरद राका रजनी विपिन वृंदा सजनि, अनिल अति मंद सीतल सहित बासु री |
परम पावन पुलिन भृंग सेवत नलिन, कल्पतरु तीर बलवीर कृत रासु री ||
सकल मंडल भलीं तुम जु हरि सौं मिलीं, बनी वर वनित उपमा कहौं कासु री |
तुम जु कंचन तनी लाल मरकत मनी, उभय कल हंस ‘हरिवंश’ बलि दासुरी || 26 ||


मधुरितु वृन्दावन आनन्द न थोर | राजत नागरि नव कुसल किशोर ||
जूथिका जुगल रूप मञ्जरी रसाल | विथकित अलि मधु माधवी गुलाल ||
चंपक बकुल कुल विविध सरोज | केतकि मेदनि मद मुदित मनोज ||
रोचक रुचिर बहै त्रिविध समीर | मुकुलित नूत नदित पिक कीर ||
पावन पुलिन घन मंजुल निकुंज | किसलय सैन रचित सुख पुंज ||
मंजीर मुरज डफ मुरली मृदंग | बाजत उपंग बीना वर मुख चंग ||
मृगमद मलयज कुंकुम अबीर | बंदन अगरसत सुरँगित चीर ||
गावत सुंदरी हरी सरस धमारि | पुलकित खग मृग बहत न वारि ||
(जै श्री) हित हरिवंश हंस हंसिनी समाज | ऐसे ही करौ मिलि जुग जुग राज || 27 ||


राधे देखि वन की बात |
रितु बसंत अनंत मुकुलित कुसुम अरु फल पात ||
बैंनू धुनि नंदलाल बोली, सुनिव क्यौं अर सात |
करत कतव विलंब भामिनि वृथा औसर जात ||
लाल मरकत मनि छबीलौ तुम जु कंचन गात |
बनी (श्री) हित हरिवंश जोरी उभै गुन गन मात || 28 ||


ब्रज नव तरुनी कदंब मुकुट मनि स्यामा आजु बनी |
नख सिख लौं अंग अंग माधुरी मोहे स्याम धनी||
यौं राजत कबरी गुंथित कच कनक कंज वदनी |
चिकुर चंद्रिकनि बीच अरध बिधु मानौं ग्रसित फनी ||
सौभग रस सिर स्त्रवत पनारी पिय सीमंत ठनी |
भृकुटि काम कोदंड नैंन सर कज्जल रेख अनी ||
तरल तिलक तांटक गंड पर नासा जलज मनी |
दसन कुंद सरसाधर पल्लव प्रीतम मन समनी ||
चिबुक मध्य अति चारु सहज सखि साँवल बिंदु कनी |
प्रीतम प्रान रतन संपुट कुच कंचुकि कसिब तनी ||
भुज मृनाल वल हरत वलय जुत परस सरस श्रवनी |
स्याम सीस तरु मनौं मिडवारी रची रुचिर रवनी ||
नाभि गम्भीर मीन मोहन मन खेलत कौं हृदनी |
कृस कटि पृथु नितंब किंकिनि वृत कदलि खंभ जघनी ||
पद अंबुज जावक जुत भूषन प्रीतम उर अवनी |
नव नव भाइ विलोभि भाम इभ विहरत वर कारिनी ||
(जै श्री) हित हरिवंश प्रसंसिता स्यामा कीरति विसद घनी |
गावत श्रवननि सुनत सुखाकर विस्व दुरित दवनी || 29 ||


देखत नव निकुंज सुनु सजनी लागत है अति चारु |
माधविका केतकी लता ले रच्यौ मदन आंगारु ||
सरद मास राका निसि सीतल मंद सुगंध समीर|
परिमल लुब्ध मधुव्रत विथकित नदित कोकिला कीर||
वहु विध रङ्ग मृदुल किसलय दल निर्मित पिय सखि सेज |
भाजन कनक विविध मधु पूरित धरे धरनी पर हेज ||
तापर कुसल किसोर किसोरी करत हास परिहास |
प्रीतम पानि उरज वर परसत प्रिया दुरावति वास ||
कामिनि कुटिल भृकुटि अवलोकत दिन प्रतिपद प्रतिकूल |
आतुर अति अनुराग विवस हरि धाइ धरत भुज मूल ||
नगर नीवी बन्धन मोचत एंचत नील निचोल |
बधू कपट हठ कोपि कहत कल नेति नेति मधु बोल ||
परिरंभन विपरित रति वितरत सरस सुरत निजु केलि |
इंद्रनील मनिनय तरु मानौं लसन कनक की बेली ||
रति रन मिथुन ललाट पटल पर श्रम जल सीकर संग |
ललितादिक अंचल झकझोरति मन अनुराग अभंग ||
(जै श्री) हित हरिवंश जथामति बरनत कृष्ण रसामृत सार |
श्रवन सुनत प्रापक रति राधा पद अंबुज सुकुमार||30||


आजु अति राजत दम्पति भोर |
सुरत रंग के रस में भीनें नागरि नवल किशोर ||
अंसनि पर भुज दियें विलोकत इंदु वदन विवि ओर |
करत पान रस मत्त परसपर लोचन तृषित चकोर ||
छूटी लटनि लाल मन करष्यौ ये याके चित चोर |
परिरंभन चुंबन मिलि गावत सुर मंदर कल घोर ||
पग डगमगत चलत बन विहरन रुचिर कुंज घन खोर |
(जै श्री) हित हरिवंश लाल ललना मिलि हियौ सिरावत मोर ||31||


आजु बन क्रीडत स्यामा स्याम ||
सुभग बनी निसि सरद चाँदनी, रुचिर कुंज अभिराम ||
खंडत अधर करत पारिरंभन, ऐचत जघन दुकूल |
उर नख पात तिरीछी चितवन, दंपति रस सम तूल ||
वे भुज पीन पयोधर परसत, वाम दृशा पिय हार |
वसननि पीक अलक आकरषत, समर श्रमित सत मार ||
पलु पलु प्रवल चौंप रस लंपट, अति सुंदर सुकुमार |
(जै श्री) हित हरिवंश आजु तृन टूटत हौं बलि विसद विहार ||32||


आजु बन राजत जुगल किसोर |
नंद नँदन वृषभानु नंदिनी उठे उनीदें भोर ||
डगमगात पग परत सिथिल गति परसत नख ससि छोर |
दसन बसन खंडित मषि मंडित गंड तिलक कछु थोर||
दुरत न कच करजनि के रोकें अरुन नैन अलि चोर |
(जै श्री) हित हरिवंश सँभार न तन मन सुरत समुद्र झकोर ||33||


बन की कुंजनि कुंजनि डोलनि |
निकसत निपट साँकरी बीथिनु, परसत नाँहि निचोलनि ||
प्रात काल रजनी सब जागे, सूचत सुख दृग लोलनि |
आलसवंत अरुन अति व्याकुल, कछु उपजत गति गोलनि ||
निर्तनि भृकुटि वदन अंबुज मृदु, सरस हास मधु बोलनि |
अति आसक्त लाल अलि लंपट, बस कीने बिनु मोलनि ||
विलुलित सिथिल श्याम छूटी लट, राजत रुचिर कपोलनि |
रति विपरित चुंबन परिरंभन, चिबुक चारु टक टोलनि ||
कबहुँ श्रमित किसलय सिज्या पर, मुख अंचल झकझोलनि |
दिन हरिवंश दासि हिय सींचत, वारिधि केलि कलोलनि ||34||


झूलत दोऊ नवल किसोर |
रजनी जनित रंग सुख सुचत अंग अंग उठि भोर ||
अति अनुराग भरे मिलि गावत सुर मंदर कल घोर |
बीच बीच प्रीतम चित चोरति प्रिया नैंन की कोर ||
अबला अति सुकुमारि डरत मन वर हिंडोर झँकोर|
पुलकि पुलकि प्रीतम उर लागति दे नव उरज अँकोर||
अरुझी विमल माल कंकन सौं कुंडल सौं कच डोर |
वेपथ जुत क्यों बनै विवेचत आनँद बढ़यौ न थोर ||
निरखि निरखि फूलतीं ललितादिक विवि मुख चंद चकोर |
दे असीस हरिवंश प्रसंसत करि अंचल की छोर ||35||


आजु बन नीकौ रास बनायौ |
पुलिन पवित्र सुभग जमुना तट मोहन बैंनु बजायौ ||
कल कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि खग मृग सचु पायौ |
जुवतिनु मंडल मध्य स्याम घन सारँग राग जमायौ ||
ताल मृदङ्ग उपंग मुरज डफ मिलि रससिंधु बढ़ायौ |
विविध विशद वृषभानु नंदिनी अंग सुघंग दिखायौ ||
अभिनय निपुन लटकि लट लोचन भृकुटि अनंग नचायौ |
ताता थेई ताथेई धरत नौतन गति पति ब्रजराज रिझायौ ||
सकल उदार नृपति चूड़ामनि सुख वारिद वरषायौ |
परिरंभन चुंबन आलिंगन उचित जुवति जन पायौ ||
वरसत कुसुम मुदित नभ नाइक इन्द्र निसान बजायौ |
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक राधा पति जस वितान जग छायौ || 36 ||


चलहि किन मानिनि कुंज कुटीर।
तो बिनु कुँवरि कोटि बनिता जुत, मथत मदन की पीर।।
गदगद सुर विरहाकुल पुलकित, स्रवत विलोचन नीर।
क्वासि क्वासि वृषभानु नंदिनी, विलपत विपिन अधीर।।
बंसी विसिख, व्याल मालावलि, पंचानन पिक कीर।
मलयज गरल, हुतासन मारुत, साखा मृग रिपु चीर ।।
(जै श्री) हित हरिवंश परम कोमल चित, चपल चली पिय तीर।
सुनि भयभीत बज को पंजर, सुरत सूर रन वीर ।।37।।


चलहि उठि गहरु करति कत, निकुंज बुलावत लाल |
हा राधा राधिका पुकारत, निरखि मदन गज ढाल ||
करत सहाइ सरद ससि मारुत, फुटि मिली उर माल |
दुर्गम तकत समर अति कातर, करहि न पिय प्रतिपाल ||
(जै श्री) हित हरिवंश चली अति आतुर, श्रवन सुनत तेहि काल |
लै राखे गिरि कुच बिच सुंदर, सुरत – सूर ब्रज बाल || 38 ||


खेल्यो लाल चाहत रवन |
रचि रचि अपने हाथ सँवारयौ निकुंज भवन ||
रजनी सरद मंद सौरभ सौं सीतल पवन |
तो बिनु कुँवरि काम की बेदन मेटब कवन ||
चलहि न चपल बाल मृगनैनी तजिब मवन |
(जै श्री) हित हरिवंश मिलब प्यारे की आरति दवन ||39||


बैठे लाल निकुंज भवन |
रजनी रुचिर मल्लिका मुकुलित त्रिविध पवन ||
तूँ सखी काम केलि मन मोहन मदन दवन |
वृथा गहरु कत करति कृसोदरी कारन कवन ||
चपल चली तन की सुधि बिसरी सुनत श्रवन |
(जै श्री) हित हरिवंश मिले रस लंपट राधिका रवन ||40||


प्रीति की रीति रंगिलोइ जानै |
जद्यपि सकल लोक चूड़ामनि दीन अपनपौ मानै ||
जमुना पुलिन निकुंज भवन में मान मानिनी ठानै |
निकट नवीन कोटि कामिनि कुल धीरज मनहिं न आनै ||
नस्वर नेह चपल मधुकर ज्यों आँन आँन सौं बानै |
(जै श्री) हित हरिवंश चतुर सोई लालहिं छाड़ि मैंड पहिचानै ||41||


प्रीति न काहु की कानि बिचारै |
मारग अपमारग विथकित मन को अनुसरत निवारै ||
ज्यौं सरिता साँवन जल उमगत सनमुख सिंधु सिधारै |
ज्यौं नादहि मन दियें कुरंगनि प्रगट पारधी मारै ||
(जै श्री) हित हरिवंश हिलग सारँग ज्यौं सलभ सरीरहि जारै |
नाइक निपून नवल मोहन बिनु कौन अपनपौ हारै ||42||


अति नागरि वृषभानु किसोरी |
सुनि दूतिका चपल मृगनैनी, आकरषत चितवन चित गोरी ||
श्रीफल उरज कंचन सी देही, कटि केहरि गुन सिंधु झकोरी |
बैंनी भुजंग चन्द्र सत वदनी, कदलि जंघ जलचर गति चोरी ||
सुनि ‘हरिवंश’ आजु रजनी मुख, बन मिलाइ मेरी निज जोरी |
जद्यपि मान समेत भामिनी, सुनि कत रहत भली जिय भोरी ||43||


चलि सुंदरि बोली वृंदावन |
कामिनि कंठ लागि किन राजहि, तूँ दामिनि मोहन नौतन घन ||
कंचुकी सुरंग विविध रँग सारी, नख जुग ऊन बने तरे तन ||
ये सब उचित नवल मोहन कौं, श्रीफल कुच जोवन आगम धन ||
अतिसै प्रीति हुती अंतरगत, (जैश्री) हित हरिवंश चली मुकुलित मन |
निविड़ निकुंज मिले रस सागर, जीते सत रति राज सुरत रन ||44||


आवति श्रीवृषभानु दुलारी |
रूप रासि अति चतुर सिरोमनि अंग अंग सुकुमारी ||
प्रथम उबटि मज्जन करि सज्जित नील बरन तन सारी |
गुंथित अलक तिलक कृत सुंदर सैंदूर माँग सँवारी ||
मृगज समान नैंन अंजन जुत रुचिर रेख अनुसारी |
जटित लवंग ललित नासा पर दसनावलि कृत कारी ||
श्रीफल उरज कँसूभी कंचुकि कसि ऊपर हार छबि न्यारी |
कृस कटि उदर गँभीर नाभि पुट जघन नितंबनि भारी ||
मनौं मृनाल भूषन भूषित भुज स्याम अंस पर डारी |
(जै श्री) हित हरिवंश जुगल करिनी गज विहरत वन पिय प्यारी ||45|


विपिन घन कुंज रति केलि भुज मेलि रूचि,
स्याम स्यामा मिले सरद की जमिनी |
हृदै अति फूल समतूल पिय नागरी,
करिनि करि मत्त मनौं विवध गुन रामिनी ||
सरस गति हास परिहास आवेस बस,
दलित दल मदन बल कोक रस कामिनी |
(जै श्री) हित हरिवंश सुनि लाल लावन्य भिदे,
प्रिया अति सूर सुख सुरत संग्रामिनी ||46||


वन की लीला लालहिं भावै |
पत्र प्रसून बीच प्रतिबिंबहिं नख सिख प्रिया जनावै ||
सकुच न सकत प्रकट परिरंभन अलि लंपट दुरि धावै |
संभ्रम देति कुलकि कल कामिनि रति रन कलह मचावै ||
उलटी सबै समझि नैंननि में अंजन रेख बनावै |
(जै श्री) हित हरिवंश प्रीति रीति बस सजनी स्याम कहावै ||47||


बनी वृषभानु नंदिनी आजु |
भूषन वसन विविध पहिरे तन पिय मोहन हित साजु ||
हाव भाव लावन्य भृकुटि लट हरति जुवति जन पाजु |
ताल भेद औघर सुर सूचत नूपुर किंकिनि बाजु ||
नव निकुंज अभिराम स्याम सँग नीकौ बन्यौ समाजु |
(जै श्री) हित हरिवंश विलास रास जुत जोरी अविचल राजु ||48||

श्री हित चौरासी जी Pad 49 se 75 Hindi Lyrics

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